किस तरह मिलूँ तुम्हें
क्यों न खाली क्लास रूम में
किसी बेंच के नीचे
और पेंसिल की तरह पड़ा
तुम चुपचाप उठा कर
रख लो मुझे बस्ते में
क्यों न किसी मेले में
और तुम्हारी पसन्द के रंग में
रिबन की शक्ल में दूँ दिखाई
और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी
खरीद लो मुझे
या कि इस तरह मिलूँ
जैसे बीच राह में टूटी
तुम्हारी चप्पल के लिये
बहुत ज़रूरी पिन
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'स्त्री मेरे भीतर' पुस्तक से
Saturday, November 18, 2006
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2 comments:
क्यों ना उछल कर आ जाओ
मेरी छुन्नी के सिलवट में
टीचर जब बोर्ड में लिखती होगी
देखूँगी छिप छिप कर तुझे
आपका शुक्रिया इतने खूबसूरत साहित्य से परीचित करने के लिए।
achchi choice hai aapki
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