Monday, November 13, 2006

चन्द शेर - बशीर बद्र साहब के

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये । --- ज़िन्दगी तूनें मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं पाँव फ़ैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । --- जी बहुत चाहता है सच बोलें क्या करें हौसला नहीं होता । --- मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो --- कोई हाथ भी न मिलायेगा, जो गले लगोगे तपाक से ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो । --- दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों । ---- एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये । --- इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे । --- वो ज़ाफ़रानी पुलोवर उसी का हिस्सा है कोई जो दूसरा पहनें तो दूसरा ही लगे । --- लोग टूट जाते हैं एक घर बनानें में तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलानें में। --- पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, आँखो को अभी ख्वाब छुपानें नहीं आते । --- हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे, रास्ता हो जाएगा --- मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है मगर उस नें मुझे चाहा बहुत है । --- मैं इतना बदमुआश नहीं यानि खुल के बैठ चुभनें लगी है धूप तो स्वेटर उतार दे ।

15 comments:

राकेश खंडेलवाल said...

और ये मेरी पसन्द के भी

खुदा हमको ऐसी खुदाई न दे
कि अपने सिवा कुछ दिखाई न दे
खतावार समझेगी दुनिया तुझे
अब इतनी जियादा सफ़ाई न दे

Udan Tashtari said...

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।


मगर आज हौसला जुटा कर कहे ही देते हैं कि यह ब्लाग आपने बहुत बेहतरीन शुरु किया है, बहुत बहुत बधाई. सभी शेर सुने हुये होने के बाद भी बार बार पढ़ने और सुनने को मन करता है.

Unknown said...

आपकी पसंद पसंद आई ।

Manish Kumar said...

बशीर बद्र की शायरी अपने आप में कमाल है । एक पोस्ट शुरु की थी इन पर परिचर्चा में । आप अपना संकलन वहाँ भी प्रस्तुत करें ये गुजारिश है ।

http://www.akshargram.com/paricharcha/viewtopic.php?id=630

Jagdish Bhatia said...

एक एक शेर किसी महाकाव्य को भी मात देता है। मेरे भी पसंदीदा हैं बद्र साहब।
संकलन देने के लिये बधाई।

नीलिमा शर्मा Neelima Sharma said...

kya karu but complete this sher ek parinda toot k gir para kisi soyi soyi jameen par...............................bas dil chahta hai k saara samay bas aap ko hi parate rahe................................

Anonymous said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

बशीर साहब का जबाब नहीं
ये शेर कई बार पड़ने पर भी बार-बार पड़ने का मन करता है
यहाँ मैं आपको एक और शायर से मिलना चाहूँगा " अशोक मिज़ाज"
जिनके बारे मैं बशीर बद्र जी ने लिखा है


"चमकती है कहीं सदियों में आसुओं से ज़मीं
ग़ज़ल के शेर कहाँ रोज़ रोज़ होते हैं"
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के अदबी रिसालों में हज़ारों शायर छप रहे हैं लेकिन ग़ज़ल इतनी आसान नहीं है जितनी की नज़र आती है यही वजह है की हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में चंद शायर ऐसे हैं जो ग़ज़ल के बदलते हुए मिज़ाज का साथ देने में कामयाब हैं | पिछले दस सालों में जो शायर उभरे हैं उनमें ’अशोक मिज़ाज’ सरे फ़हरिस्त हैं |
you can read ashok mizaj on www.ashokmizaj.blogspot.com

Wasim Tyagi said...

jinke angan me amiri ka shajar lagta he
unka her aib jamane ko hunar lagta he

kya khoob bashir sahab


wasim akram jounalisim student

kavita said...

bashir jee ki har shayri har gajal bemisal hai

Anonymous said...

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Unknown said...

सात संदूकों में भरकर दफन कर दो नफ़रतें
आज इंसान को मोहब्बत की ज़रूरत है बहुत।
बशीर साहब

OP Yadav said...

जिओ महबूब ज़माने के।। बशीर तो एक ही हैं।।।

DC tripathi age 52 said...

बशीर साहब तो एक नायाब कोहिनूर हैं ।दुनियां केअज़ीम शायरों में एक हैं।उनकी शायरी हुनर तो माशाअल्लाह। उनका हरएक शेर नगीने की तरह ताराशा हुआ होता है ।।

Unknown said...

बशीर साहब को सलाम