Sunday, September 02, 2007

मेरा नाम मुसलमानों जैसा है - राही मासूम रज़ा की नज़्म

अभी राही मासूम रज़ा साहब के जन्म दिन पर पहले कुरबान अली साहब की खूबसूरत पोस्ट और उस के बाद युनुस भाई और मनीष के संस्मरण पढ कर रज़ा साहब की बचपन में पढी एक नज़्म याद आ गई । बहुत बरस हो गये उसे पढे लेकिन हिला कर रख दिया था इस ने । किताब मेरे पास नहीं है लेकिन आज भी पंक्तियां ज़बानी याद सी हैं । किताब का नाम 'मैं एक फ़ेरीवाला' था , पिछली भारत यात्राओं में उसे खोजनें की काफ़ी कोशिश की लेकिन शायद 'आउट औफ़ प्रिंन्ट' होनें के कारण कहीं उपलब्ध नही है, अगर किसी को जानकारी हो तो मुझे बतायें ।

नज़्म स्मृति से दे रहा हूँ , गलतियां हो सकती हैं :


मेरा नाम मुसलमानों जैसा है

मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो ।
मेरे उस कमरे को लूटो
जिस में मेरी बयाज़ें जाग रही हैं
और मैं जिस में तुलसी की रामायण से सरगोशी कर के
कालिदास के मेघदूत से ये कहता हूँ
मेरा भी एक सन्देशा है
मेरा नाम मुसलमानों जैसा है
मुझ को कत्ल करो और मेरे घर में आग लगा दो ।
लेकिन मेरी रग रग में गंगा का पानी दौड़ रहा है,
मेरे लहु से चुल्लु भर कर
महादेव के मूँह पर फ़ैंको,
और उस जोगी से ये कह दो
महादेव ! अपनी इस गंगा को वापस ले लो,
ये हम ज़लील तुर्कों के बदन में
गाढा , गर्म लहु बन बन के दौड़ रही है ।
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राही मासूम रज़ा (मैं एक फ़ेरीवाला से)