Monday, October 30, 2006

वह नहीं कहती

उसनें कहा
उसके पास एक छोटा सा ह्रदय है

जैसे धूप कहे
उसके पास थोड़ी सी रौशनी है

आग कहे
उसके पास थोड़ी सी गरमाहट---

धूप नहीं कहती उसके पास अंतरिक्ष है
आग नहीं कहती उसके पास लपटें
वह नहीं कहती उसके पास देह ।

- अशोक वाजपेयी

6 comments:

Pratyaksha said...

बहुत सुंदर कविता !

Udan Tashtari said...

बहुत सार्थक प्रयास है, अनूप जी और उतनी ही सुन्दर इन दोनों रचनाओं के साथ शुरुवात.

आपको इस प्रयास हेतु बहुत बधाई एवं अनेकों शुभकामनायें.

राकेश खंडेलवाल said...

और उसने कुछ कहा नहीं
उसके बाद किसी से
वह सब कुछ कह गयी

अनूप शुक्ल said...

बढि़या है. बहुत खूब!

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

behad sundar

--Manoshi

Dr. Seema Kumar said...

कितने सरल शब्द और कितनी गहराई ! कविता के इसी स्वरूप से बेहद प्रभावित हूँ |

अपनी पसंद को बाँटने के लिए धन्यवाद |