Monday, October 30, 2006

वह नहीं कहती

उसनें कहा
उसके पास एक छोटा सा ह्रदय है

जैसे धूप कहे
उसके पास थोड़ी सी रौशनी है

आग कहे
उसके पास थोड़ी सी गरमाहट---

धूप नहीं कहती उसके पास अंतरिक्ष है
आग नहीं कहती उसके पास लपटें
वह नहीं कहती उसके पास देह ।

- अशोक वाजपेयी

अश्‍आर मिरे यूँ तो जमाने के लिये हैं


अश्‍आर मेरे यूँ तो जमाने के लिये हैं
कुछ शेर फ़क़त उनको सुनानें के लिये हैं

अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेज़े से लगानें के लिये हैं

आंखों में जो भर लोगे, तो काँटो से चुभेंगे
ये ख्वाब तो पलकों में सजानें के लिये हैं

देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ
मन्दिर में फ़क़त दीप जलानें के लिये हैं


सोचो तो बड़ी चीज़ है तहज़ीब बदन की
वरना तो बदन आग बुझानें के लिये है


ये इल्म का सौदा, ये रिसाले, ये किताबें
इक शख़्स की यादों को भुलानें के लिये है
----

जाँनिसार अख़्तर

इल्म:ज्ञान , सौदा:पागलपन , रिसाले: पत्रिकाएँ